मौत सामने खड़ी हो, फिर भी जीवटता के साथ कर्मशील बने रहना सीखना हो, तो सीखिए राम रतन जी कुमावत से।


सैलाना  मौत सामने खड़ी हो, फिर भी जीवटता के साथ जीना नही छोड़ने की कला बहुत कम लोगों में होती हैं।
क्या कहेंगे, उस इंसान की जीवटता को जो कैंसर से जूझ कर अपने जीवन काल के अंतिम दीनो में है,फिर भी कर्म करने में पीछे नही है निःसंदेह यह अनुकरणीय है । ऐसा ही एक जीवटता वाला इंसान सैलाना में हैं ।जो अपने कर्म के साथ ही जीवन के अंतिम दिनो को भी बिना डरे जी रहा है।
फिलहाल कीर्ति विहार कॉलोनी में निवासरत 80 वर्षीय रामरतन कुमावत पेशे से टेलर है। वे पूर्व में सदर बाजार में किराए की दुकान में सिलाई और एंब्राइड्री वर्क का कार्य करते थे और बाद में अब अपने घर पर ही ये काम करते हैं।



कोई दो वर्ष पूर्व वे केंसर का शिकार हो गए उनकी आंख के ऊपर कैसर की गांठ साफ साफ दिखती है।

 अब तो बिलकुल अंतिम दिनों में  वे अपने बहु - बेटे और पोते- पोतियों के साथ रहते है। उनकी पत्नी इस दुनिया में नही है ।उनके पुत्र राजू सिलावटी का काम करते हैं  और अपने पिता की सेवा में बिलकुल पीछे  नही है ।राजू बताते है कि इन दिनों में उनकी बीमारी बेहद गंभीर अवस्था में है । चिकित्सको ने उनके सामने ही साफ इंकार कर दिया है कि उनका जीवन अब अधिक नही है । इसके बावजूद वे सिलाई मशीन सुधारने व एंब्राइडरी के काम में बहू की मदद करने में पीछे नही रहते  ।

 भय से मरने वालो के लिए ये एक सीख  ये जिंदादिल इंसान उन सब मरीजों के लिए प्रेरणा देकर जीवन के अंतिम दिनो में कर्मशील है ,जो कैंसर का नाम सुनकर ही भय से मर जाते हैं। निःसंदेह जीवन कितना है , ये ऊपर वाला ही तय करता है ।पर कब तक कर्म कर डटे रहना है,ये आप ही को तय करना है ।सैलाना का ये अस्सी वर्षीय बुजुर्ग हर आम व खास के लिए ये सीख छोड़कर बिदा होगा कि मृत्यु शाश्वत है ,उससे डरे नही।।